![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxnpNZZDVi-qes56wVcAkFjVEkTO-GULhI8G8Ggt_99g3DhyRwr9HD_JIcJWvEawZKhviN47XKYdG8b8mM8xqkkSdO8jSYQ0QsCLzEbzaxhwwQxbb19oaiqpAWvQW083PfrLPN0yVI6RG_/s200/shlok+mehta.jpg)
'भय' एक ऐसा भाव है, जो एक व्यक्ति के लिए भयानकता कि स्थिती उत्पन्न करता है । एक व्यक्ति को जिस स्थिति से हय लगता है, जरुरी नहीं कि उस स्थिति से दुसरे लोगों को भय लगे । की व्यकिओं को पहाड़ों कि ऊंचाई, किसी को पानॉई कि गहराईयों से, तो किसीक को अंधेरे से भय लगता है। भय मानव मन कि वह कल्पना है जिसे मनुष्य स्वयं बनाता है।
अनेक लोगों को परिक्षा का भय सताता है । यह ऐसा भय होता है जिससे अच्छे अचछों के छक्के छूट जातें हैं। जिन छात्रों ने महेनत कि होती है, उनको भीऔर जिन्होंने नहीं कि होती है उन्को भीसमान रुप से भय लगता है । इनमें ऐसे छात्रो की भी गिनती होती है जो पीले चहेरों और कांपती टांगों को लिए इधर-उधर घूमते नज़र आतें हैं ।परिक्षा का भय छात्रों के माता-पिता को भी आतंकित कर देता है। कई माता-पिता बच्चों की परिक्षा के लिए दफ्तर से छुट्टी तक ले लेतें हैं । परिक्षा का भय छात्रों से उनका स्वास्थय, छीन लेता है । परिक्षा के भय से सारे छात्र पुरा दिन अपनी किताब लिए फिरते रहेतें हैं। वे परिक्षा के समय बहुत परेशान हो जातें हैं। परिक्षा और उस के परीणाम के भय ने कई छात्रों को मोत की नींद में सुला दिया है।
ईन सब का कारण हमारी शिक्षा पर्णाली है, जिसने छात्रों के अंदर परिक्षा और उच्च परिणामों का भय उत्पन्न कर दिया है । ईस लिए विद्यार्थिओं को चाहिए कि वह परिक्षा को उच्च अंक प्राप्ति का लक्ष्य नहीं अपितु ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य बनाएं।
- श्लोक मेहता